भाषण के दौरान सोते दिखाई दिये मंत्री, सांसद
रिकार्ड तोड़ने के लिए मोदी ने दिया था सबसे लंबा भाषण!
आखिर संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषण से सत्ताधारी दल को आपत्ति की क्या वजह?
मोदी सरकार की अनैतिक कार्यशैली से नाराज विपक्ष ने संसद में सरकार को घेरा
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा, मोदी को पहुंचा सकता है नुकसान
विजया पाठक वरिष्ट पत्रकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में 10 अगस्त को अविश्वास प्रस्ताव पर रिकार्ड तोड़ भाषण दिया। मोदी करीब 02 घंटा 13 मिनट तक लोकसभा में बोले। यह भाषण देश के इतिहास में सबसे लंबा भाषण है। अब इस भाषण की अंदर की मंशा को भी समझने की कोशिश करते हैं। दरअसल इससे पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने संसद में 02 घंटा 12 मिनट का भाषण दिया था। मतलब मोदी का भाषण 01 मिनट ज्यादा रहा। कहा जा सकता है कि मोदी ने यह लंबा भाषण इसलिए दिया ताकि एक पूर्व प्रधानमंत्री का रिकार्ड तोड़ा जा सके। क्योंकि भाषण में मोदी ने जिन बातों का जिक्र किया वह केवल अपनी सरकार की उपलब्धियों पर था, जबकि विपक्ष मणिपुर मामले पर अविश्वास प्रस्ताव लाया था और उसी पर पीएम मोदी को बुलवाना चाह रहा था लेकिन मोदी मणिपुर पर 96 मिनट के बाद बोले जब तक तमाम विपक्ष वाकआउट कर चुका था। मोदी का भाषण इतना उबाउ था कि अपनी ही सरकार के तमाम मंत्री, सांसद उबते, सोते हुए दिखाई दिये। जिनमें नितिन गडकरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अश्विनी कुमार जैसे मंत्री भी शामिल थे। अब सवाल उठता है कि जब मोदी को मुख्य मुददे पर बोलना ही नहीं था तो इतना लंबा भाषण देने की क्या जरूरत थी।
इसके साथ ही बीता सप्ताह देश की राजनीति में वर्षों बरस तक याद रखा जाएगा।
याद इसलिए रखा जाएगा क्योंकि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी वाली भाजपा सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों ने जिस ढंग से अविश्वास प्रस्ताव की पेशकश संसद में की उससे मोदी सरकार पूरी तरह हिल गई। सरकार के मंत्रियों पर इस प्रस्ताव का ऐसा असर हुआ कि संसद में सरकार के मंत्री बढ़े ही हल्के अंदाज में सरकार का पक्ष रखते देखने को मिले। यही नहीं जब सरकार अपने मंत्रियों का फिसड्डी परफॉर्मेंस देखा तो पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी और फिर सांसद अधीर रंजन चौधरी पर संसद की अवमानना का आरोप लगा डाला। अधीर रंजन को तो लोकसभा से सस्पेंड कर दिया गया। केंद्र सरकार के दबाव में आकर जिस ढंग से लोकसभा अध्यक्ष ने फैसला किया है उसने एक बार फिर संसद की कार्यवाही पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। 1963 में पहली बार जवाहरलाल नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। तब से लेकर अब तक संसद में 28 अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं। पिछली बार 20 जुलाई 2018 को मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, जिसमें मोदी सरकार की जीत हुई थी।
संसद से राहुल गांधी के शब्दों को हटाया
अविश्वास प्रस्ताव पर जब राहुल गांधी चर्चा कर रहे थे तब सत्ताधारी दल ने उनके शब्दों को हटाने की मांग की। यह मांग इसलिए की गई थी क्योंकि उन्होंने संसद में मणिपुर में लगी आग और रोज हो रही हत्या को रोकने में सरकार को नाकाम बताया। यह पहला अवसर नही है जब राहुल गांधी को संसद में बोलने से रोका गया हो, इससे पहले भी अदानी मामले में जब राहुल गांधी ने संसद में सवाल खड़े किए थे तब मोदी सरकार ने इसका विरोध किया था।
प्रेसवार्ता में झलका राहुल का दर्द
राहुल गांधी ने संसद सत्र के दौरान प्रेसवार्ता की। इसमें उनके शब्दो में जो दर्द था वो साफतौर पर देखा जा सकता था। राहुल का यह दर्द कांग्रेस नेताओं के लिए नही बल्कि बीते छह महीने से जल रहे मणिपुर को लेकर थी। मणिपुर में जो आग लगी है, जो मौतें हुई हैं। आखिर इन सबका जिम्मेदार कौन है। राहुल ने कहा कि अगर सरकार चाहे तो एक दिन में सेना को तैनात कर मणिपुर की घटनाओं को रोक सकती है। लेकिन मोदी सरकार खुद नहीं चाहती कि यह घटना रुके।
दूसरी बार आया मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
मणिपुर मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई और तेलंगाना की सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति के नामा नागेश्वर राव ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था। हालांकि, नंबर गेम के लिहाज से सरकार को इससे कोई खतरा नहीं था। यह दूसरी बार है जब पीएम मोदी की सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही थी। पिछले कार्यकाल में तेलुगु देशम पार्टी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी, जिसके खिलाफ 325 वोट पड़े थे, जबकि पक्ष में 126 वोट पड़े थे।
क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव?
किसी मुद्दे पर विपक्ष की नाराजगी होती है तो लोकसभा सांसद नोटिस लेकर आता है। जैसे इस बार मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष नाराज था और वह लगातार सदन में प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रहा था। सरकार को घेरने के लिए वह अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया था। लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला ने इसे स्वीकर भी कर लिया। अविश्वास पर चर्चा के लिए 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है।
जब 1979 में गिरी थी देसाई की सरकार
आजादी के बाद से अब तक 27 बार केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, लेकिन सिर्फ एक बार ही पास हुआ। जुलाई 1979 में पीएम मोरारजी देसाई ने वोटिंग से पहले इस्तीफा दे दिया था, जिस वजह से उनकी सरकार गिर गई। आखिरी बार अविश्वास प्रस्ताव 20 जुलाई 2018 को आया था। 23 बार कांग्रेस पार्टी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया। हालांकि 10 साल पीएम रहे मनमोहन सिंह के खिलाफ एक बार भी अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया। इसके अलावा, 02 बार जनता पार्टी जबकि 02 बार बीजेपी सरकार के खिलाफ अविश्वास लाया गया।