विभीषिका दिवस की जिम्मेदारी को निभाते हुए तमाम मीडिया एक तरफ और सुदर्शन न्यूज़ के सुरेश चौहानके की भूमिका एक तरफ। आज का दिन मीडिया जगत के लिए बहुत बड़ी जिम्मेवारी का दिन है। लेकिन आज दस फ़ीसद मीडिया भी अपनी सही जिम्मेदारी निभाता नजर नहीं आ रहा। तमाम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सुदर्शन न्यूज़ नमन के योग्य है कि उन्होंने विभाजन की विभीषिका को दिखाते हुए आज अपना चैनल पूर्ण रूप से समर्पित ही कर दिया है।
पाकिस्तान से आए हिंदुओं में परमहंस लाल मेहता मेहता भी हैं, सुदर्शन न्यूज़ को वे बताते हैं कि विभाजन के बाद जब वह भारत वापस आ रहे थे तो तब वे सारी रात एक रेलवे स्टेशन पर रुके थे, कामोके रेलवे स्टेशन। उनकी आयु 10 वर्ष थी। वे अपने चाचा के साथ थे। सुबह पुलिस आई और उन लोगों को कहा आप लोग किसी तरह का हथियार लेकर भारत नहीं जा सकते और वे पुलिस वाले उनलोगों से सारे अस्त्र-शस्त्र लेकर चले गए। यह कहकर कि वे आगे जा रहे हैं मॉब को हटाने, उल्टे मॉब को बुला लाए। सबसे पहले उन लोगों ने पैसे छीना शुरू किया। स्त्रियों के जेवर नोचने शुरू किए। तकरीबन तीन 400 युवान कन्याओं को अपहरण कर लिए। यदि कोई युवान लड़का ट्रेन से निकल कर भागता था, तो बलोच मिलिट्री उसे गोली मार देती थी। गन्ने काटने की तरह 3 घंटे तक ट्रेन में वे लोग मारकाट करते रहे। परमहंस लाल को देखकर दो मुसलमान आपस में बात करने लगे, कि तुम्हारा बेटा नहीं है इस लड़के को ले चलो।
परमहंस लाल के चाचा राजी हो गए। उन्होंने कहा इसे ले जाओ साथ में, लेकिन मारना मत। परमहंस लाल के पास जेब में उन्हें बहुत पसंदीदा एक घड़ी थी। उन्होंने अपने जेब से घड़ी निकाली और अपने मासूम मोल से उन दोनों मुसलमानों को बोला, ये घड़ी ले लो और मुझे छोड़ दो। हंसलाल के चाचा बहुत बेसहाय थे। तलवार से उन पर इतने वार किए गए कि उनका जबड़ा तक कट चुका था। तलवार का एक वार परमहंस लाल के गर्दन पर भी लगा था। जिसकी छाप वे आज भी दिखा रहे हैं। पूरी तरह मारकाट मचाने के बाद बचे खुचे हिंदुओं को प्लेटफॉर्म पर उतारा जा रहा था। इतने में संयोग बस कुछ हिंदू मिलिट्री वाले आ गए और परमहंस लाल की जान किसी तरह बच गई। ट्रेन में भरकर लाशों को भारत भेजा गया। यह लिखकर की ये तोहफा गांधी नेहरू को है। इस तोहफे का गांधी ने क्या किया, देश अब यह प्रश्न पूछ रहा है। लोग कहते हैं गांधी अमर हैं, तो गांधी को इस प्रश्न का जवाब देना ही पड़ेगा। नहीं तो गांधी के हिस्से का ये पाप गांधी को धूमिल कर देगा।
इतिहासकार कृष्णानंद सागर सैकड़ो प्रत्यक्षदर्शियों से मिलकर उनके हालात अपनी पुस्तक में संकलित किए हैं। एक प्रत्यक्षदर्शी की घटना बताते हैं, कि एक जत्था जो पाकिस्तान से चला था और उसे रावि पर करना था। रावि पार करने से पहले वे लोग एक स्थान पर पहुंचे, स्थान जस्सर। वहां उसे जत्थे के साथ मुसलमानों ने लूटपाट की। महिलाओं के आभूषण छीन लिए गए और महिलाएं वस्त्र में कोई चीज छुपा कर रखी हों, इस कारण उनके वस्त्र भी फाड़ दिए गए। अर्धनग्न की स्थिति में वे आगे बढ़े तो उन्हें कुछ सिक्ख सैनिक मिले, जिन्होंने पगड़ी के वस्त्र उतार कर उन स्त्रियों को तन ढकने के लिए दे दिया। एक दूसरे जत्थे के बारे में इतिहासकार कृष्णानंद बताते हैं कि कुछ मुसलमान आए और बोले कि हमारे पास ट्रक है और कुछ पैसे में आपको बॉर्डर तक पहुंचवा देंगे। पैसे के मोल जोल से राजी होकर तकरीबन 70 परिवार तीन-चार ट्रक में भरकर रवाना हुए। ट्रक जब आगे बढ़ी तो एक नहर की पुल पर जाकर खड़ी हो गई। इसके बाद ट्रक में ही सवार कुछ मुसलमान थे जो उतर कर सड़क पर आ गए और एक अच्छी खासी मॉम ने उन ट्रकों को चारों ओर से घेर लिया और सब को नीचे उतरने को कहा। महिलाओं को एक तरफ और पुरुषों को एक तरफ खड़ा किया गया। सभी पुरुषों को तलवारों से काट दिया गया। स्त्रियों के समूह में एक सबसे युवान थीं, पूरी स्थिति देखकर हर हाल में वे मुसलमानों के स्पर्श तक नहीं पहुंचना चाहती थी। और वे नहर में छलांग लगा दी। देखते ही देखते बाकी महिलाओं ने भी पीछे से छलांग लगा दी। और इस विभीषिका की स्मृति यह देश कभी नहीं भूल सकता। नहीं भूल सकता।
साभार: विशाल झा